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अनजान-अजनबी

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इस बेरंग भरी दुनिया में  रंग सजाया है जिसने, अरे! बनी ऊसर भूमि पर बीज उगाया है जिसने, अचल खड़ा जो अडिग हिमालय उसे डिगाया है जिसने, कोई है अनजान-अजनबी दिया जलाया है जिसने। पल-पल की बेला बन अनुपम सपनों के उस चरम शिखर पर, लिए जा रही मुझे सहज ही जड़ से चेतन की जगती पर, आहा! कितना मधुर जगत है असंबद्ध भावों के अंदर, मन करता है बना रहे यह भावों के भावों के अंदर। मुझे देख मुस्काने वाली अंतर हृदय चुराने वाली, मेरे कविता के छंदों की  शिल्पी बन कर आने वाली, जरा मुझे इतना बतला दे क्या है तेरे दिल के अंदर, दूर रहे तू दृष्टि-पटल पर रहे साथ तू दिल के अंदर।।              --- AMAR PANDEY

बोतलें

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मंद गंध मदमस्त बोतलें खुली हुई हैं प्यालों पर  हल्की हल्की हवा चल रही ठन्डे ठन्डे जाड़ों पर मधुशाला पर मतवाले कुछ ऐसा रंग दिखाते हैं जिसे देख कर महानटी भी ऊँगली दांत  दबाते हैं,   मदिरालय की रिक्त अवधि वे अपशब्दों से भरते है तथाकथित तो जन्म जन्म के दुःख को साझा करते हैं अमृत रस के ग्रहण पूर्व वे ऐसी कसमे खाते हैं कहीं कहीं तो मदिराजल से  धरा सींचते जाते है, फिर प्याले अधरों पर रखकर अपनी प्यास बुझाते हैं कभी कभी तो मदिरा की बोतल ही पीते जाते हैं।                                              -AMAR PANDEY

कविता - उत्थान-पतन तो जीवन है

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                                                                                                                                     -उत्थान-पतन तो जीवन है -                                               उत्थान-पतन तो जीवन है                                      ,अभिलाषा को क्यों त्यागूँ मैं,                                       ...

कविता - आँगन के पुष्प

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                                            मेरे आंगन के प्यार पुष्प ,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े। कुछ बिखर गए कुछ खड़े रहे,  कुछ नीर-वात में सड़े हुए। कुछ तीव्र वृष्टि में उजड़ गए,  कुछ तेज हवा में उखड गए, कल तक जो मेरे पास रहे.  वे क्षड़ भर में ही नष्ट हुए। मेरे आंगन के प्यार पुष्प,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। ....१ वे टूट गए हिय लूट गए,  मन रूठ गए तन शिथिल हुए । अपने दिल की तो बात रही.  औरों के दिल भी पिघल गए। रस-छंद भरे मेरे प्रसून,  कुछ टूट गए कुछ व्यथित हुए। मेरे आंगन के प्यार पुष्प,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। .....२ कुछ शब्द पुष्प की मालाएं,  पर बनी हुई थी रचनाएँ। जीवन को मेरे सवारी थीं,  मन उदधि क्षीर सी धराये। पल दो पल की बस बात रही.  छवि अस्त दीप्ति सब तमित हुए। मेरे आंगन के प्यार पुष्प,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। ....३           ...

कविता-विचार मीमांसा

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                                                                                                                                                         विचार-मीमांसा                  जब मूर्त रूप लेंगे विचार तब तेज पुंज विकसित होगा ,                  कलि के कलुषी मतभेदों पर फिर वज्र ज्वाल वृष्टित होगा ,                  मन-बुद्धि-चित्त तीनों मिलकर सच्चाई को पहचानेंगी,                  मृगतृष्णा रुपी आडम्बर को कुण...

कविता- कर्म पथ

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                                                                                                                                        कर्म-पथ  पथ प्रदर्शन मार्ग,  दृष्टी कर्म पथ से जोड़ लेना, हर मुसीबत आंक लेना पथ को पहले भांफ लेना, और धरती से गगन का रास्ता तुम नाप लेना।। पथ प्रदर्शन  .......... सत्यता पर अडिग होकर कर्म-पथ पर जो चले हैं, मार्ग की कठिनाइयों को तोड़कर आगे बढ़े हैं, बस उन्ही को देखकर निज मार्ग अपना समझ लेना।। पथ प्रदर्शन  ........... मार्ग की कठिनाइयों में जीत हर इक है तुम्हारी, हर मुसीबत गा रही है जीत है तेरी कहानी, बस मुसीबत देखकर निज पैर पीछे कर न लेना।। पथ प्रदर्शन  ............ ...