बोतलें



मंद गंध मदमस्त बोतलें
खुली हुई हैं प्यालों पर 
हल्की हल्की हवा चल रही
ठन्डे ठन्डे जाड़ों पर
मधुशाला पर मतवाले कुछ
ऐसा रंग दिखाते हैं
जिसे देख कर महानटी भी
ऊँगली दांत  दबाते हैं,
 
मदिरालय की रिक्त अवधि
वे अपशब्दों से भरते है
तथाकथित तो जन्म जन्म के
दुःख को साझा करते हैं
अमृत रस के ग्रहण पूर्व
वे ऐसी कसमे खाते हैं
कहीं कहीं तो मदिराजल से 
धरा सींचते जाते है,

फिर प्याले अधरों पर रखकर
अपनी प्यास बुझाते हैं
कभी कभी तो मदिरा की
बोतल ही पीते जाते हैं।
                                             -AMAR PANDEY













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