कविता - आँगन के पुष्प
मेरे आंगन के प्यार पुष्प,
कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।
कुछ बिखर गए कुछ खड़े रहे,
कुछ नीर-वात में सड़े हुए।
कुछ तीव्र वृष्टि में उजड़ गए,
कुछ तेज हवा में उखड गए,
कल तक जो मेरे पास रहे.
वे क्षड़ भर में ही नष्ट हुए।
मेरे आंगन के प्यार पुष्प,
कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। ....१
वे टूट गए हिय लूट गए,
मन रूठ गए तन शिथिल हुए ।
अपने दिल की तो बात रही.
औरों के दिल भी पिघल गए।
रस-छंद भरे मेरे प्रसून,
कुछ टूट गए कुछ व्यथित हुए।
मेरे आंगन के प्यार पुष्प,
कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। .....२
कुछ शब्द पुष्प की मालाएं,
पर बनी हुई थी रचनाएँ।
जीवन को मेरे सवारी थीं,
मन उदधि क्षीर सी धराये।
पल दो पल की बस बात रही.
छवि अस्त दीप्ति सब तमित हुए।
मेरे आंगन के प्यार पुष्प,
कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। ....३
___ _ अमर पांडेय
बहुत ही प्यारी रचना ।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर आदरणिये जी
ReplyDeleteपल दो पल की बस बात रही.
ReplyDeleteछवि अस्त दीप्ति सब तमित हुए।
मेरे आंगन के प्यार पुष्प,
कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।।
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आदरणीय अमर पांडेय जी, आपकी ही तरह यह रचना अमर रहे, ईश्वर से यही प्रार्थना है। आपकी लेखनी से परम सुगंधित ये पुष्प खिलकर अपनी सुवासिता से सभी को सदा प्रफुल्लित करते रहें। एक श्रेष्ठ रचना के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएँ💐💐💐
बहुत बहुत सुंदर आदरणिये अमित जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय अमर जी बहुत ही सराहनीय सुंदर रचना है आपकी | सस्नेह शुभकामनायें |
ReplyDeleteपुष्प का जीवन तो वैसे ही लम्बा नहि होता कुछ दिनों का का होता है ... और उसी में वो पूरी उम्र जी लेते हैं ।।।
ReplyDeleteअपना अहसास भी सभी को कराते हैं ...