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कविता - आँगन के पुष्प

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                                            मेरे आंगन के प्यार पुष्प ,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े। कुछ बिखर गए कुछ खड़े रहे,  कुछ नीर-वात में सड़े हुए। कुछ तीव्र वृष्टि में उजड़ गए,  कुछ तेज हवा में उखड गए, कल तक जो मेरे पास रहे.  वे क्षड़ भर में ही नष्ट हुए। मेरे आंगन के प्यार पुष्प,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। ....१ वे टूट गए हिय लूट गए,  मन रूठ गए तन शिथिल हुए । अपने दिल की तो बात रही.  औरों के दिल भी पिघल गए। रस-छंद भरे मेरे प्रसून,  कुछ टूट गए कुछ व्यथित हुए। मेरे आंगन के प्यार पुष्प,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। .....२ कुछ शब्द पुष्प की मालाएं,  पर बनी हुई थी रचनाएँ। जीवन को मेरे सवारी थीं,  मन उदधि क्षीर सी धराये। पल दो पल की बस बात रही.  छवि अस्त दीप्ति सब तमित हुए। मेरे आंगन के प्यार पुष्प,  कुछ इधर पड़े कुछ उधर पड़े।। ....३                                                        ___ _ अमर पांडेय