कविता - उत्थान-पतन तो जीवन है
-उत्थान-पतन तो जीवन है - उत्थान-पतन तो जीवन है ,अभिलाषा को क्यों त्यागूँ मैं, है लक्ष्य बड़ा इस जीवन का पाषाण देख क्यों कांपू मैं, यह कर्म भूमि है वीरो की, कायरता की पहचान नहीं, जो हार गया इस जीवन से, वो व्यक्ति कोई बलवान नहीं, उत्थान-पतन तो जीवन है - क्या रवि यह क्रंदन करता है , लड़ सकता तम से और नहीं स्तब्ध हुई ज्वाला मेरी,