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अनजान-अजनबी

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इस बेरंग भरी दुनिया में  रंग सजाया है जिसने, अरे! बनी ऊसर भूमि पर बीज उगाया है जिसने, अचल खड़ा जो अडिग हिमालय उसे डिगाया है जिसने, कोई है अनजान-अजनबी दिया जलाया है जिसने। पल-पल की बेला बन अनुपम सपनों के उस चरम शिखर पर, लिए जा रही मुझे सहज ही जड़ से चेतन की जगती पर, आहा! कितना मधुर जगत है असंबद्ध भावों के अंदर, मन करता है बना रहे यह भावों के भावों के अंदर। मुझे देख मुस्काने वाली अंतर हृदय चुराने वाली, मेरे कविता के छंदों की  शिल्पी बन कर आने वाली, जरा मुझे इतना बतला दे क्या है तेरे दिल के अंदर, दूर रहे तू दृष्टि-पटल पर रहे साथ तू दिल के अंदर।।              --- AMAR PANDEY