कविता - उत्थान-पतन तो जीवन है
-उत्थान-पतन तो जीवन है -
उत्थान-पतन तो जीवन है
,अभिलाषा को क्यों त्यागूँ मैं,
है लक्ष्य बड़ा इस जीवन का
पाषाण देख क्यों कांपू मैं,
यह कर्म भूमि है वीरो की,
कायरता की पहचान नहीं,
जो हार गया इस जीवन से,
वो व्यक्ति कोई बलवान नहीं,
उत्थान-पतन तो जीवन है -
क्या रवि यह क्रंदन करता है ,
लड़ सकता तम से और नहीं
स्तब्ध हुई ज्वाला मेरी,
थक गया जल सकूँ सौर नहीं,
संकल्प सदा उज्जवल मेरा,
कायरता की पहचान नहीं,
पाषाण रूप मन मेरा है,
यह सैकत का मृदभाड नहीं,
उत्थान-पतन तो जीवन है -
हर कठिनाई यह कहती है,
बस की तेरे यह बात नहीं,
जाएगा थक सुन ले बन्दे,
तेरे मन की औकात नहीं,
विचलित मत होना क्षण भर भी,
मन पर्वत है पतियाल नहीं,
जो अडिग खड़ा है धरती पर,
डिग जाये वे कैलाश नहीं,
उत्थान-पतन तो जीवन है -
सौरज धीरज से युक्त पुरुष,
तू प्रबल अग्नि की ज्वाला है,
व्यापकता में आकाश सदृश,
करुणा तेरी जल-धारा है,
जो सकल चराचर को बाँधे,
वह भी नित शीश झुकाती है,
मन का तेरा बैराग्य देख,
वह माया भी झुक जाती है,
उत्थान-पतन तो जीवन है -
---अमर पाण्डेय
Kavita bhut achi hai..👌👌😊
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